Share Split Kya Hota hai ( शेयर स्प्लिट क्या होता है?) / Stock Split in Hindi

अगर आप शेयर बाजार में रुचि रखते हैं, तो यह आपको जरूर ही पता होगा कि MRF का शेयर प्राइस ₹1,00,000 से भी ज्यादा है, तो वहीं WIPRO कंपनी का शेयर प्राइस केवल ₹500 है, तो इसका मतलब ये तो नहीं की MRF अच्छी कंपनी है और WIPRO अच्छी कंपनी नहीं है कंपनी है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, एमआरएफ का शेयर प्राइस इसलिए इतना ज्यादा है, क्योंकि एमआरएफ ने अपने शेयर को स्प्लिट नहीं किया है, और विप्रो ने अपने शेयर को कई बार स्प्लिट किया है, जिसकी वजह से विप्रो का शेयर प्राइस इतना कम है। इस वजह से आज हम अपने ब्लॉग में Share Split Kya Hota hai इसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने वाले हैं, ताकि आपको यह पता चले की कंपनियां शेयर स्प्लिट क्यों करती है? तथा इससे क्या फायदा होता है?

Share Split Kya Hota hai

Share Split Kya Hota hai / शेयर स्प्लिट क्या होता है?

जब भी कोई कंपनी अपने शेयर को स्प्लिट करती है, तो वह एक ही शेयर को कई सारे टुकड़ों में विभाजित कर देती है, जिसे हम शेयर स्प्लिट कहते हैं।
उदाहरण के लिए टाटा कंपनी ने यह घोषणा किया कि वह अपने शेयर को 1:5 में स्प्लिट कर देगी, यानी टाटा कंपनी अपने एक शेयर को पांच टुकड़ों में बांट देगी। यानी किसी निवेशक के पास यदि टाटा कंपनी के 100 शेयर होंगे, तो 1:5 में स्प्लिट होने के बाद उसे निवेशक के पास अब 500 शेयर हो जाएंगे।

हालांकि शेयर स्प्लिट होने से उसे शेयर के दाम पर भी फर्क पड़ता है, यानि कंपनी जिस रेश्यो के आधार पर अपना शेयर स्प्लिट करती है, उस शेयर का दाम भी इसी रेश्यो के आधार पर बट जाता है। यानी अगर टाटा कंपनी के एक शेयर का दाम पहले ₹10 हुआ करता था, तो 1:5 में स्प्लिट होने के बाद अब उसके एक शेयर का दाम ₹2 हो जाएगा।

आपको यह अवश्य ही लग रहा होगा कि शेयर स्प्लिट और बोनस शेयर एक दूसरे के समान ही होते हैं, क्योंकि इसमें भी शेयर का विभाजन होता है और बोनस शेयर के वक्त भी कंपनियां निवेशकों को स्प्लिट के बदले फ्री में शेयर देती है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता।

शेयर स्प्लिट और बोनस शेयर में क्या अंतर है?

जब कंपनी बोनस घोषित करती है, तो वह उसे बोनस शेयर के पैसे को अपने Reserve & Surplus से भुगतान करती है। जबकि शेयर स्प्लिट में कंपनियां अपने रिजर्व से पैसे ना देकर अपने फेस वैल्यू को 1:5 में बांट देती है, यानी जिस प्रकार के रेश्यो के आधार पर वह अपने शेयर को स्प्लिट करना चाहती है, अपने फेस वैल्यू को भी ही इस आधार पर बांट देती है। ऐसा करने से कंपनी के शेयर कैपिटल पर भी किसी प्रकार का असर नहीं पड़ता।

शेयर स्प्लिट से क्या असर पड़ता है?

1) शेयर स्प्लिट करने से उसे कंपनी के शेयर की संख्या स्प्लिट के रेश्यो के आधार पर बढ़ जाता है।

2) कंपनी का EPS स्प्लिट के रेश्यो के आधार पर घट जाता है।

कंपनियां शेयर स्प्लिट क्यों करती है?

1) शेयर को सभी के खरीदने लायक बनाने के लिए

जब कंपनी को ऐसा लगता है कि उनके शेयर का दाम अधिक बढ़ गया है, जिससे रिटेल निवेशक निवेश नहीं कर पा रहे हैं, तो कंपनियां अपने शेयर का दाम शेयर स्प्लिट करके घटा देती है, जिससे कि ज्यादा से ज्यादा रिटेल निवेशक उनके शेयर में निवेश कर सके।

2) शेयर में लिक्विडिटी बनाने के लिए

जब मार्केट में किसी अच्छी कंपनी के शेयर के दाम घट जाते हैं, तो रिटेल निवेशकों में उत्साह बढ़ जाता है और उन्हें मौका मिल जाता है, उस कंपनी में निवेश करने के लिए और ऐसा करके कंपनियां रिटेल निवेशकों का भरोसा भी जीत पाती है।

3) निवेशकों को डायवर्सिफाई करने के लिए

जब कंपनियां अपना शेयर स्प्लिट करके शेयर की संख्या बढ़ा देती है तथा शेयर के दाम को कम कर देती है, तो इससे कई अन्य प्रकार के रिटेल निवेशक जैसे मिडिल क्लास, लोअर मिडल क्लास निवेशक भी उनके शेयर में निवेश कर पाते हैं। जिससे उस कंपनी की शेयर केवल बड़े-बड़े निवेशक के पास ही नहीं अपितु हर प्रकार के निवेशकों के पास चले जाता है, जिससे उनके शेयर पर रिस्क भी कम हो जाता है।

कुछ कंपनियां क्यों शेयर स्प्लिट नहीं करती?

1) कई बार कंपनियां ऐसा सोचती है कि जब शेयर बाजार में उसके कंपनी का सब कुछ सही ही चल रहा है, तो शेयर स्प्लिट करने की क्या जरूरत है। उदाहरण के लिए 2010 में एमआरएफ के शेयर का दाम ₹8,700 था, जो 2021 में बढ़कर ₹82,000 हो गया और 2024 में यह आंकड़ा ₹1,00,000 के भी पार जा पहुंचा है। एमआरएफ ना तो 2010 में रिटेल निवेशक की बस में था और ना ही वह 2024 में है, फिर भी एमआरएफ ने 2010 से अब तक 900 परसेंट से भी ज्यादा का रिटर्न दिया है, और वह भी बिना स्टॉक के स्प्लिट किये, इसका मतलब यह है अगर किसी कंपनी में आगे बढ़ाने की क्षमता है, तो वह बिना शेयर स्प्लिट किये भी ग्रो कर सकती है।

2) कुछ कंपनियों के शेयर स्प्लिट न करने का दूसरा कारण यह भी है, कि जब तक कंपनी के शेयर का दाम ज्यादा होता है, तब-तक काफी रिटेल निवेशक उसे शेयर को नहीं खरीद पाते हैं। जिनकी वजह से कंपनी के प्रमोटर के पास शेयर्स की होल्डिंग ज्यादा मात्रा में होती है और इस वजह से निर्णय लेने की क्षमता कम लोगों के पास रहती है और कंपनी जल्दी ग्रो कर पाती है।

3) कंपनी के शेयर स्प्लिट न करने का तीसरा कारण है,”डे ट्रेडिंग या इंट्राडे ट्रेडिंग से बचने के लिए।” मतलब जब किसी कंपनी के शेयर का दाम ज्यादा होता है, तो उसमें रिटेल निवेशक डे ट्रेडिंग या इंट्राडे ट्रेडिंग नहीं कर पाते हैं और इसकी वजह से कंपनी स्पैक्यूलेशन का शिकार होने से बच जाती है।

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निष्कर्ष

हम उम्मीद करते हैं कि हमारे इस ब्लॉग से आपको Share Split Kya Hota hai के बारे में संपूर्ण जानकारियां मिल गई होगी और आपको यह भी समझ में आ गया होगा, कि कंपनियां शेयर स्प्लिट क्यों करती है? तथा कुछ कंपनियां शेयर स्प्लिट क्यों नहीं करती? अगर आपको हमारा या ब्लॉग पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी अवश्य शेयर कीजिएगा।

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